अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव के बाद राजभर से जोड़ लिया हाथ,आज बुलाई है पार्टी की बैठक हैं अहम।

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समाजवादी पार्टी गठबंधन से ओमप्रकाश राजभर और शिवपाल सिंह यादव को आजाद करने के बाद पूर्व मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव ने कल यानी 26 जुलाई को पार्टी विधायकों की बैठक बुलाई है। माना जा रहा है कि इस बैठक में अखिलेश पार्टी में पिछले कुछ दिनों से चल रहे सियासी दांव पेंचों के असर को जानने की कोशिश करेंगे। बैठक में मिशन-2024 को लक्ष्‍य मानकर पार्टी को अपने बूते दोबारा मुकाबले के लिए तैयार करने की रणनीति पर विचार होगा।

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अखिलेश ने शिवपाल यादव के बाद राजभर से जोड़ लिया हाथ,आज बुलाई है पार्टी की बैठक।

अब अखिलेश किसी नए फार्मूले पर आगे बढ़ना चाहते हैं। बैठक में इस नए फार्मूले पर विचार होगा। साथ ही विधायकों को शिवपाल और ओम प्रकाश राजभर के प्रकरण से अवगत कराते हुए पार्टी को एकजुट कर आगे बढ़ने का पाठ पढ़ाया जाएगा।

यूपी की राजनीति में 2017 के विधानसभा चुनाव से लेकर अभी तक अखिलेश यादव कई दांव-पेंच आजमा चुके हैं। कभी कांग्रेस को साथ लिया तो कभी छोटे दलों से समझौता किया लेकिन ये प्रयोग असफल रहे। अब अखिलेश किसी नए फार्मूले पर आगे बढ़ना चाहते हैं। बैठक में इस नए फार्मूले पर विचार होगा। साथ ही विधायकों को शिवपाल और ओम प्रकाश राजभर के प्रकरण से अवगत कराते हुए पार्टी को एकजुट कर आगे बढ़ने का पाठ पढ़ाया जाएगा। पार्टी के संगठन को मजबूती देने और आगे के कार्यक्रम तय करने के मुद्दे पर विधायकों से चर्चा होगी।


मान-सम्मान के सवाल पर अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के लिए राहें पूरी तरह जुदा हो गईं हैं लेकिन अब सवाल है कि शिवपाल यादव अगले लोकसभा चुनाव में सपा को कितना नुकसान करेंगे या यूं कहें कि वह भाजपा के लिए सपा के मूल वोट बैंक में कितनी सेंध लगा पाते हैं। अखिलेश यादव के लिए चार चुनाव हार के बाद पांचवां चुनाव जीतने की चुनौती है तो शिवपाल यादव के लिए भी खुद को साबित करने की। माना जा रहा है कि कल की बैठक में शिवपाल और ओमप्रकाश दोनों के जाने से पार्टी को होने वाले नफा-नुकसान पर विस्‍तार से चर्चा होगी।

सपा को खड़ा करने का अनुभव व संगठन में पकड़ रखने के चलते शिवपाल भविष्य में खतरा बन सकते थे शिवपाल।


शिवपाल खुद को सपा का नेता और विधायक बताते रहे लेकिन सपा उन्‍हें सहयोगी प्रसपा का नेता मानती रही। यह कश्मकश इसलिए थी कि सपा में अगर जरा भी शिवपाल को सक्रियता दिखाने का मौका मिलता था तो पार्टी के भीतर दो केंद्र बनते देर नहीं लगती। सपा को खड़ा करने का अनुभव व संगठन में पकड़ रखने के चलते शिवपाल भविष्य में खतरा बन सकते थे। अब सम्मान विदा कर सपा ने भविष्य के लिए संकट को दूर करने की कोशिश की है। अखिलेश के लिए यह राहत भरी बात है लेकिन शिवपाल को साथ लेकर वह भाजपा को शिकस्त दे सकते हैं या शिवपाल के बिना वह ऐसा कर सकते है, यह चुनाव नतीजे बताएंगे।

सूत्रों का कहना है कि राजभर को लेकर ताजा अटकलें यह हैं कि अगले एक सप्ताह के अंदर उनकी मुलाकात भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से होने वाली है। जिसमें यह तय होगा कि आमचुनाव 2024 में साथ-साथ चलने के लिए राजभर को किस तरह प्रदेश की सत्ता में समायोजित किया जाए।

शिवपाल यादव अपनी पार्टी प्रसपा को नए सिरे से मजबूती में लगे हैं। सपा के चक्कर में उनकी पार्टी संगठन के तौर पर तीन -तेरह हो गई है। अब उन्होंने लोकसभा चुनाव अपने बूते लड़ने का ऐलान किया है। अभी यह तय नहीं कि वह भाजपा में शामिल होकर सहयोग करेंगे या गठबंधन करके या फिर वह कोई और मोर्चा बनाने की जुगत में लगेंगे। पर हर हाल में उन्हें अपनी ताकत साबित करनी होगी।

उधर, सपा गठबंधन से आजाद हुए सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के अगले कदम को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। बसपा के साथ जाने के उनके बयान को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। इसके उलट यह कयासबाजी तेज हो गई है कि राजभर भाजपा से ही जुड़ेंगे। वर्ष 2024 आमचुनाव से पहले प्रदेश में वह सत्ता में भागीदारी पा सकते हैं।