दो सांसद के विरोध के बाद #नारीशक्तिवंदनअधिनियम, हुआ पारित,महिलाओं व बुद्धजीवियों में बनी चर्चा का विषय, आखिर क्या है वजह जो 2029 में होगा लागू,देखे सिर्फ चर्चा के.डी न्यूज़ यूपी पर।
लोकसभा में बुधवार 20 सितंबर को महिला आरक्षण बिल 454 मतों से पास हो गया. इस बिल के जरिए लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित हो जाएंगी. हालांकि केंद्र सरकार के इस नारी शक्ति वंदन अधिनियम को लागू होने में कई साल लगने की संभावना है. दरअसल, कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान भी ये बिल राज्यसभा में पेस हुआ. लेकिन जब ये लोकसभा में पहुंचा तो मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव और शरद यादव जैसे नेताओं ने अन्य पिछड़ा वर्ग की महिलाओं के लिए अलग कोटा इसमें नहीं होने के चलते इसका कड़ा विरोध किया था.
*दो सांसद के विरोध के बाद #नारीशक्तिबंदनअधिनियम, लोकसभा में हुआ पास,लेकिन क्यों महिलाओं में बना है बहस का मुद्दा,देखें के.डी न्यूज़ यूपी पर।*
आइये जानते है कि यह संविधान के 85 वें संशोधन का विधेयक है। इसके अंतर्गत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटों पर आरक्षण का प्रावधान रखा गया है। इसी 33 फीसदी में से एक तिहाई सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित की जानी है। लैंगिक समानता और समावेशी शासन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होने के बावजूद यह विधेयक बहुत लंबे समय से अधर में लटका हुआ है।
सुलतानपुर जनपद के मशहूर कवि शायर डॉ डीएम मिश्र इस महिला आरक्षण पर क्या राय दे रहे हैं सुन लेते हैं।
1990 के दशक से ही राजनीति में महिला आरक्षण के मुद्दे को पिछड़ी जातियों के उत्थान का मुकाबला करने के लिए ऊंची जातियों की साजिश के रूप में देखा जाता रहा है. यही कारण है कि इस बार लोकसभा में भी इसका विरोध हुआ. हालांकि मतदान के दौरान विरोध में महज दो ही वोट पड़े. बुधवार को बिल के खिलाफ मतदान करने वाले केवल दो सांसदों में से एक, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने संसद में ओबीसी और मुस्लिम प्रतिनिधित्व की कमी को इसका कारण बताया. उन्होंने कहा कि यह केवल सवर्ण महिलाओं को आरक्षण प्रदान करेगा. वहीं विधेयक का समर्थन करने वाले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी कहा कि ओबीसी महिलाओं के लिए कोटा के बिना यह अधूरा है।
विधेयक में कहा गया है कि लोकसभा, राज्यों की विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी.
इसका मतलब यह हुआ कि लोकसभा की 543 सीटों में से 181 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी.
लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए सीटें आरक्षित हैं. इन आरक्षित सीटों में से एक तिहाई सीटें अब महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी.
इस समय लोकसभा की 131 सीटें एससी-एसटी के लिए आरक्षित हैं. महिला आरक्षण विधेयक के क़ानून बन जाने के बाद इनमें से 43 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी.
इन 43 सीटों को सदन में महिलाओं के लिए आरक्षित कुल सीटों के एक हिस्से के रूप में गिना जाएगा.
इसका मतलब यह हुआ कि महिलाओं के लिए आरक्षित 181 सीटों में से 138 ऐसी होंगी जिन पर किसी भी जाति की महिला को उम्मीदवार बनाया जा सकेगा यानी इन सीटों पर उम्मीदवार पुरुष नहीं हो सकते
आइये जानते हैं आम जनता इस पर अपना क्या राय दे रही है।
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