सुलतानपुर-जेल अधीक्षक ने जिला कारागार को बना दिया सुधार गृह , प्रशिक्षण के तहत कैदी बन रहे हैं हुनरमंद।

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जेल अधीक्षक ने जिला कारागार को बना दिया सुधार गृह,कौशल विकास मिशन प्रशिक्षण के तहत कैदी बन रहे हैं हुनरमंद।

पहले कैदियों से खुद को जोड़ा और उनसे किया निरंतर संवाद।

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सुलतानपुर । जेल अधीक्षक ने जिला कारागार का चार्ज संभालते ही सर्वप्रथम सुरक्षा व सुधार और साथ ही पुनर्वास पर ध्यान देना शुरू किया। उन्होंने जेल को आश्रम बना डाला। ऐसा आश्रम जहां आकर अब कैदियों के जीवन की नई राह निकलती हैं।
अनिल कुमार गौतम को जब सुलतानपुर जेल की कमान सौंपी गई थी, तब इस जेल की छवि इतनी खराब थी कि यहां किसी अधिकारी की नियुक्ति को सजा समझा जाता था । लेकिन उनके अल्पकार्यकाल में ही सुलतानपुर जेल को लोग जेल नहीं अब आश्रम के तौर पर जानने लगे हैं। यहां की तैनाती को अब सजा नहीं बल्कि इनाम समझा जाने लगा। अब जेल अधीक्षक अनिल कुमार गौतम को उनके जेल सुधार कार्यक्रमों को लेकर रिफार्म अनिल कुमार गौतम कहा जाने लगा है ।
               जेल अधीक्षक श्री गौतम ने यहां अपनी तैनाती के साथ ही कैदियों/ वंदियों के सुधार पुनर्वास और सुरक्षा पर दिया ध्यान दिया , जबकि इसके पहले कार्यरत रहे जेल अधिकारियों की कार्यप्रणाली इस सोच पर आधारित थी कि यहां सिर्फ कैदियों को सुरक्षित रखना है । लेकिन कैदियों में सुधार कैसे हो, इस पर जेल अधीक्षक श्री गौतम ने बड़ी गहराई से विचार किया और तय किया कि सुधार की दो प्रक्रियाओं को साथ-साथ लेकर चलना होगा। एक आंतरिक और दूसरा बाहरी। आंतरिक सुधार की प्रक्रिया के तहत उन्होंने जेल में ध्यान, योग, सामूहिक प्रार्थना , कैदियों / वंदियों को कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षण दिलाकर हुनरमंद बनाने के साथ ही कई नई चीजों की शुरुआत की। उन्होंने कैदियों में नैतिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का विकास उत्प्नन करने के लिए सार्थक प्रयास शुरू कर दिया है ।
उनका मानना था कि इससे कैदियों के भीतर नैतिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का विकास होगा। वे स्वयं के प्रति अनुशासित रहेंगे। बुरे कार्यो से हमेशा दूर रहेंगे।
जेल अधीक्षक अनिल कुमार गौतम ने बाहरी सुधार के तहत जेल संचालन में साझेदारी और एकीकरण की शुरुआत की है। उन्होंने कैदियों में आपसी प्रेम, जेल कर्मियों का कैदियों के प्रति संवेदनशील व्यवहार, एक दूसरे के प्रति भरोसा, प्रशासनिक सुधार जैसे उपाय पर बल दिया है । उनकी सार्थक पहल जेल में स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से ऐसे कार्यक्रम शुरू कराने की है, जिसमें कैदियों को व्यवसायिक कोर्स कराए जाते हैं। उनका उद्देश्य यह है कि कैदी जब जेल से बाहर निकलें तो
 उनके हाथ में हुनर हो और वे आत्मनिर्भर होकर सम्मानित जीवन जी सकें।
        जेल अधीक्षक अनिल कुमार गौतम के कार्यकाल में जितने सुधारात्मक कार्य हुए, वे बेमिसाल हैं। जेल में इन सुधारों का असर होना लाजिमी था। जेल में मारपीट, झगड़े होने काफी कम हो गए हैं। ऐसे कैदी जिन्होंने पढ़ा लिखा नहीं होने के कारण हमेशा अंगूठा लगाया था वे हाथ में कलम पकड़ने लगे हैं।  वे स्वयं रोजाना कैदियों के बीच पहुंचते हैं और उनसे निरंतर संवाद करते हैं। इसी का नतीजा है कि कैदियों /वंदियों के खानपान, स्वचछता और स्वास्थ्य से जुड़ी उनकी समस्याओं का निदान होने लगा। जेल में कैदियों को अच्छा भोजन मिलने लगा और उनके हुनर को बेहतर आकार दिया जाने लगा।उनका मानना है कि जेल में सुरक्षा सुनिश्चित करने, कैदियों के रहन-सहन का स्‍तर बेहतर करने और जेल को एक सुधार केंद्र में तब्‍दील करने की ज़रूरत है।

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