भाजपा के साथ साथ बसपा,सपा ने भी ओबीसी पर कर दी है जोरआजमाइश,ओबीसी अब किस तरफ बदलेगा करवट, शह और मात के इस खेल का देखे रिपोर्ट।

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उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटों के बारे में कहा जाता है कि यहां का मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग नेता को नहीं बल्कि जाति को देखते हुए देता है।

चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक, यूपी में ओबीसी 42 प्रतिशत, यादव 11%, कुर्मी 5%, कोइरी व मौर्य ,कुशवाहा,सैनी 4%, साथ ही जाट 2% और अन्य ओबीसी 16% हैं। यह आंकड़ा चुनाव आयोग के मुताबिक उत्तर प्रदेश के लिए जारी है।

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उत्तर प्रदेश में 42 फीसदी वोट अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी के हैं।ऐसे में ओबीसी वोट बैंक के लिए भाजपा, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस अपना जनाधार मजबूत करने के लिए पूरी ताकत के साथ जुटे हुए हैं। बीजेपी का सत्ता से बाहर करने के लिए कांग्रेस और समाजवादी पार्टी एकजुट हो कर हाथ मिलाया है। जबकि बसपा अकेले चुनाव में उतरी है।

अब आमजन में चर्चा है कि यूपी के सियासी मैदान में बसपा का वोट बैंक किस तरफ बंटेगा।अगर ऐसा होता है तो इस वोट बैंक में मायावती के नुकसान से किसे फायदा मिलेगा।

वही कुछ राजनीतिक लोगों का मानना है कि “बीएसपी के ओबीसी वोट बीजेपी के पास जा रहा है और नॉन-जाटव वोट कुछ बीजेपी और कुछ समाजवादी पार्टी के साथ जा सकता है साथ ही जाटव वोट काफी हद तक बीएसपी के साथ ही रहेगा. लेकिन इसका एक हिस्सा बीजेपी या सपा के साथ जा सकता है।

उत्तर प्रदेश के ओबीसी मतदाताओं को लुभाने में बसपा सुप्रीमो मायावती भी पीछे नहीं हैं। साल 2007 में जब उनकी पार्टी ने पूर्ण बहुमत के साथ यूपी में सरकार बनाई थी, तब उन्हें अच्छी-खासी मात्रा में वोट मिले थे. बसपा और सपा ने साथ मिलकर 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था. इसका फायदा बसपा को मिला. उसके ओबीसी वोट बैंक के शेयर में इजाफा हुआ था. अब 2024 के इलेक्शन में ओबीसी मतदाताओं को साधने के लिए मायावती ने जाति जनगणना की मांग का समर्थन किया है।

वैसे ओबीसी को भी सपा का कोर वोटर माना जाता है। यादव समाज समाजवादी पार्टी के डेडिकेटेड वोटर्स माने जाते हैं। लेकिन 2017 में जब से भाजपा यूपी की सत्ता में काबिज हुई, तब से ओबीसी वोट बैंक भी डिवाइड हो गया।भाजपा ने अपनी राजनीतिक रणनीतियों की मदद से सपा के इस मतदाताओं में पर्याप्त सेंधमारी की,और देखते ही देखते गैर-यादव ओबीसी समुदाय भाजपा के पास आते गए और सपा से दूर होते गए।

पिछले चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि भाजपा को ओबीसी का बंपर वोट मिला। इस लोकसभा चुनाव में ओबीसी मतदाताओं को संभालने के लिए भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है। 2014 में सपा और बसपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था, तब अगर यादवों के वोट को छोड़ दिया जाए, तो बाकी ओबीसी जातियों में भाजपा और सपा के बीच 35 से 70 फीसदी का अंतर है। 2019 में जब सपा-बसपा साथ थे, तब भी ये 50 से 84 फीसदी का अंतर है।अब अगर गठबंधन को पार पाना है तो इस अंतर को पाटना पड़ेगा जो इतना आसान नहीं दिख रहा है।

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