सुलतानपुर जनपद का ऐतिहासिक दुर्गापूजा महोत्सव कब से हुआ है शुरू,श्रद्धालुओं की क्या है राय डीएम एसपी की क्या है व्यवस्था देखे पूरी रिपोर्ट।

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सुलतानपुर जनपद का ऐतिहासिक दुर्गापूजा महोत्सव देश में कलकत्ता शहर के बाद नंबर दो का स्थान मिला हुआ है।आज हम सुलतानपुर जनपद में ऐतिहासिक दुर्गापूजा महोत्सव की शुरुआत कब से हुआ है किसने शुरू किया आज उसी को लेकर चर्चा करेंगे। श्रीराम जन्मभूमि की नगरी अयोध्या के निकट बसे सुलतानपुर जनपद को जिसे कुशभवनपुर के नाम से जाना जाता है यहां दुर्गापूजा महोत्सव चल रहा है। यहां पर अष्टमी से पण्डालों की सजावट शुरू होती है। और दशहरा के दिन से श्रद्धालुओं की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो जाती है।दुर्गापूजा के दौरान बेहतरीन साज सज्जा में भले कलकत्ता का पहला स्थान हो पर सुलतानपुर की दुर्गापूजा अपने आप में इकलौती है। पांच दिनों तक अलग-अलग तरह से होने वाली भव्य सजावट और दुर्गा जागरण से शहर अलौकिक हो उठता है। यहां का विसर्जन सबसे आकर्षक होता है जो परंपरा से हटकर पूर्णिमा को सामूहिक शोभायात्रा के रूप में शुरू होकर लगभग 48 घंटे में सम्पन्न होता है।

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*सुलतानपुर जनपद का ऐतिहासिक दुर्गापूजा महोत्सव कब से हुआ है शुरू,श्रद्धालुओं की क्या है राय डीएम एसपी की क्या है व्यवस्था देखे पूरी रिपोर्ट।*

उल्लेखनीय है कि प्रभु श्रीरामचंद्र की अयोध्या से लगभग 65 किलोमीटर, प्रयागराज से 100 किलोमीटर तथा बाबा भोलेनाथ की नगरी काशी से 155 किलोमीटर की दूरी पर बसे कुश की नगरी कुशभवनपुर जो अब सुलतानपुर नाम से जाना जाता है स्थित है। गोमती नदी के तट पर स्थित प्राचीनकाल में इसे भगवान कुश ने बसाया था। जिसके कारण इसे कुशभवनपुर के नाम से भी जाना जाता है। इस चल रहे मेले में पहुँचे श्रद्धालुओं ने अपनी राय दी।

इस पूरे मामले पर केन्द्रीय दुर्गापूजा समिति के मीडिया प्रभारी सत्य प्रकाश गुप्ता ने बताया कि वर्तमान में शहर व आसपास क्षेत्रों में ढाई से तीन सौ के आसपास और जनपद भर में करीब सात सौ से ज्यादा मूर्तियां प्रतिवर्ष स्थापित की जा रही हैं। जिसमें प्रतिवर्ष दो चार का इज़ाफा ही हो रहा है।

उन्होंने बताया कि जिले की पहचान और गौरव दुर्गापूजा महोत्सव के रुप में इसलिये और बढ़ गया कि दशमी के दिन देश व प्रदेश के अन्दर मूर्तियां विसर्जित कर दी जाती हैं, पर यहां कुछ अलग ही परम्परा का इतिहास है। दशमी के दिन रावण का पुतला फूंके जाने के पूर्व नौ दिनों तक शहर के रामलीला मैदान में सम्पूर्ण रामलीला की झांकी प्रस्तुत की जाती है और उसके बाद दशमी के दिन से सात दिनों तक दुर्गापूजा मेले का आयोजन होता है। जिसमें भरत मिलाप से लेकर विविध कार्यक्रम आयोजित होते हैं।

श्री गुप्ता का कहना है कि जनपद को देश के अन्दर पहला स्थान मिलने का एक मुख्य वजह यह है कि वर्ष 1983 के बाद से शहर के अन्दर जगह-जगह अनेक मंदिरों का दृश्य कारीगरों द्वारा पंडाल के रुप में देखने को मिलता है। साथ ही आने वाले दूर दराज के लोगों के लिये विशाल भंडारे के आयोजन के साथ दवा से लेकर हर आवश्यक सुविधा स्थानीय स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा यहां मुहैया कराई जाती है।

सप्ताह भर चलने वाले इस कार्यक्रम का समापन विसर्जन के रुप में करीब 48 घंटों के बाद सीताकुंड घाट पर होता है। जिसे देखने के लिये आसपास जिलों के हजारों लोग जमा होते हैं। ऐसे में शहर के अंदर तिल रखने की भी जगह नहीं होती।

केन्द्रीय पूजा व्यवस्था समिति के पूजा प्रबंधक बाबा राधेश्याम सोनी की मानें तो आज भिखारीलाल सोनी इस दुनिया में नहीं है, पर उनके द्वारा रखी गई दुर्गापूजा महोत्सव की नींव मजबूत होती चली जा रही है। राधेश्याम की मानें तो उनका जनपद भारतीय संस्कृति एवं एकात्मता की मिसाल है। दुर्गापूजा की समितियों में मुस्लिम सदस्य भी हैं और तमाम मुस्लिम विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से दुर्गा भक्तों के सहयोग में लगे रहते हैं।

गौरतलब हो कि पहली बार वर्ष उन्नीस सौ उनसठ में शहर के ठठेरी बाज़ार में बड़ी दूर्गा के नाम से भिखारीलाल सोनी ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर यहां दुर्गापूजा महोत्सव के उपलक्ष्य में पहली मूर्ति स्थापना की थी, इस मूर्ति को उनके द्वारा बिहार प्रान्त से विशेष रूप से बुलाये गए तेतर पंडित व जनक नामक मूर्तिकारों ने प्रातिमा को अपने हाथों से बनाया था। विसर्जन पर उस समय शोभा यात्रा डोली में निकली गयी थी । डोली इतनी बड़ी होती थी जिसमें आठ व्यक्ति लगते थे। पहली बार जब शोभा यात्रा सीताकुंड घाट के पास पहुंची थी तभी जिला प्रशासन ने विर्सजन पर रोक लगा दिया था। जो बाद में सामाजिक लोगों के हस्तक्षेप के बाद विसर्जित हो सकी थी। यह दौर दो सालों तक ऐसे ही चला। वर्ष 1961 में शहर के ही रुहट्टा गली में काली माता की मूर्ति की स्थापना बंगाली प्रसाद सोनी ने कराई और फिर 1970 में लखनऊ नाका पर कालीचरण उर्फ नेता ने संतोषी माता की मूर्ति को स्थापित कराया। वर्ष 1973 में अष्टभुजी माता, श्री अम्बे माता, श्री गायत्री माता, श्री अन्नापूर्णा माता की मूर्तियां स्थापित कराई गई। इसके बाद से तो मानों जनपद की दुर्गापूजा में चार चांद लग गया और शहर, तहसील, ब्लाक एवं गांवों में मूर्तियों का तांता सा लग गया।वही कूरेभार बाजार में दुर्गापूजा महोत्सव काफी धूमधाम से मनाया जाता है सुलतानपुर जनपद में इस कस्बे का अलग ही स्थान है यहां के स्थानीय लोगों का क्या कहना है आप भी सुने।

सुलतानपुर जनपद के ऐतिहासिक दुर्गा पूजा महोत्सव में सोमवार की रात्रि नगर के चौक में मेला संचालन के लिए केंद्रीय पूजा व्यवस्था समिति के नियंत्रण कक्ष और मेलार्थियों के सहयोगार्थ जिला सुरक्षा संगठन शिविर का जिलाधिकारी कृत्तिका ज्योत्स्ना व पुलिस अधीक्षक सोमेन बर्मा ने मां दुर्गा की पूजा अर्चना कर व फीता काटकर शुभारम्भ किया। इसी के साथ दुर्गापूजा महोत्सव का प्रारंभ हो गया।

जिले की जिलाधिकारी कृत्तिका ज्योत्स्ना व पुलिस अधीक्षक सोमेन बर्मा ने सभी से मिलकर आस्था, उल्लासपूर्व और शांतिपूर्वक शामिल होने का आह्वान किया।इस पूरे मामले पर पुलिस अधीक्षक सोमेन बर्मा ने जानकारी दी।