नगर के रामलीला मैदान में अयोध्या के कलाकारों द्वारा मेघनाथ वध की कथा का किया गया मंचन।

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नगर के रामलीला मैदान में अयोध्या के कलाकारों द्वारा मेघनाथ वध की कथा का किया गया मंचन…

सुल्तानपुर:- मेघनाथ वध की कथा नगर में रामलीला ट्रस्ट समिति द्वारा संचालित रामलीला महोत्सव के 12वे दिन वध का प्रसंग अयोध्या के कलाकारों द्वारा मंचन किया गया। सायं 4बजे जुलूस निकाला जाता है, जिसमें मेघनाथ और लक्ष्मण के बीच तथा राक्षसों और वानरों में भयंकर युद्ध होते हुए शहर के प्रमुख चौराहों से होकर से गुजरता है तथा रात्रि में 8बजे कलाकारों द्वारा रामलीला मैदान के मंच पर मंचन करते हुए , लक्ष्मण द्वारा मेघनाथ के पुतले का दहन किया जाता है। मेघनाथ एक ऐसा योद्धा था जिसका वध करना साधारण मानव तो क्या स्वयं देवताओं, गंधर्व, दानवों इत्यादि के लिए भी असंभव था। वह अपने पिता व लंका के राजा रावण से भी अत्यधिक शक्तिशाली था, जब रावण प्रथम बार युद्धभूमि में गया था तब भगवान श्रीराम से पराजित होकर वापस लौटा था किंतु मेघनाथ ने तीन दिनों तक भीषण युद्ध किया था। प्रथम दिन उसने स्वयं नारायण के अवतार श्रीराम व लक्ष्मण को नागपाश में बांध दिया था जिसे गरुड़ देवता के द्वारा मुक्त करवाया गया था। द्वितीय दिन उसने लक्ष्मण को शक्तिबाण से मुर्छित कर दिया था जिसके बाद संजीवनी बूटी के कारण उनके प्राणों की रक्षा हो पायी थी। अंतिम दिन मेघनाथ की मृत्यु हुई थी। मेघनाथ को इंद्रजीत की उपाधि स्वयं भगवान ब्रह्मा ने दी थी व साथ ही एक वर दिया था। उसी वर के फलस्वरूप वह निकुंबला देवी का यज्ञ कर रहा था जिसके संपूर्ण होने के पश्चात उसे हराना असंभव था, इसलिए लक्ष्मण ने उसका यह यज्ञ विफल कर दिया था। भगवान ब्रह्मा ने मेघनाथ को वर देते समय बताया था कि जो कोई भी उसका यज्ञ पूर्ण होने से पहले विफल कर देगा उसी के हाथों उसकी मृत्यु होगी।
मेघनाथ को त्रिदेव से तीन शक्तिशालती अस्त्र प्राप्त थे जिसके कारण वह ब्रह्मांड में अविजयी था। वह तीन अस्त्र थे ब्रह्मास्त्र, पाशुपाति अस्त्र व नारायण अस्त्र। जब मेघनाथ ने लक्ष्मण पर यह तीनों अस्त्र एक-एक करके चलाए तो तीनों ही लक्ष्मण का कुछ नही बिगाड़ पाए क्योंकि लक्ष्मण स्वयं भगवान विष्णु के शेषनाग का अवतार थे जिन पर इनका कोई प्रभाव नही पड़ता था। इसके बाद भी मेघनाथ लक्ष्मण के साथ भीषण युद्ध कर रहा था। उसके पास कई मायावी शक्तियां थी व हवा में उड़ने वाला रथ जिसकी सहायता से वह लक्ष्मण पर दसों दिशाओं से आक्रमण कर रहा था। लक्ष्मण भी उससे लगातार तीन दिन तक युद्ध कर रहे थे किंतु उसकी माया व तीव्र गति के कारण उसे हरा नही पा रहे थे। अंत में लक्ष्मण ने एक बाण उठाया व उसे मेघनाथ पर छोड़ने से पहले उस बाण को प्रतिज्ञा दी कि यदि श्रीराम उसके भाई व दशरथ पुत्र है, यदि श्रीराम ने हमेशा सत्य व धर्म का साथ दिया है, यदि श्रीराम अभी धर्म के लिए कार्य कर रहे है, यदि मैंने श्रीराम की सच्चे मन से सेवा की है तो तुम मेघनाथ का गला काटकर ही वापस आओगे, यह कहकर लक्ष्मण ने मेघनाथ पर तीर छोड़ दिया। यदि वह तीर मेघनाथ की गर्दन बिना काटे वापस आ जाता तो भगवान श्रीराम के चरित्र पर लांछन लगता। अतः उस तीर के द्वारा मेघनाथ का संहार हुआ व उसका मस्तिष्क धड़ से काटकर अलग हो गया, इस प्रकार अत्यंत पराक्रमी योद्धा मेघनाथ के जीवन का अंत हो गया। कुशभवनपुर में सैकड़ों वर्षो से चल रही ऐतिहासिक रामलीला महोत्सव के आज 12वे दिन संत तुलसीदास उच्चतर माध्यमिक विद्यालय रामलीला मैदान मे हरिब्रत मिश्र ने बताया कि भगवान का पूजन व आरती करने वाले मुख्य अतिथि के रूप में एसडीएम सदर चंद्र प्रकाश पाठक, ओम प्रकाश पांडे (बजरंगी) अध्यक्ष केंद्रीय दुर्गा पूजा व्यवस्था समिति, सिटी मजिस्ट्रेट प्रशांत बरनवाल आदि उपस्थित रहे।

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