(#गणतंत्रदिवस)ऐ मेरे वतन के लोगो जरा याद करो कुर्बानी 1962 की जंग में#परमबीरचक्रविजेता #वीरअब्दुलहमीद के साथ उनके #ड्राइबर ने कैसे लड़ी लड़ाई।सुने उन्हीं की #जुबानी।

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#भारतपाक के #जंग की #कहानी। सुने वीरअब्दुलहमीद के #ड्राइवर की जुबानी (#इंटब्यू) #सुल्तानपुर।

वीर अब्दुल हमीद के ड्राइवर अभी जिंदा है।यह हम नही उनके साथ अंतिम समय बिताए उनके ग्रेनेडियर नसीम शेख ने के.डी न्यूज़ के संपादक कपिल देव शुक्ल से बातचीत के दौरान बताई और इस इतिहास के पन्ने पर पड़े गर्दे को हटाते हुए बताया।

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1965 की भारत पाक जंग में अमर सेनानी वीर अब्दुल हमीद के साथ बतौर चालक खेमकरण मोर्चे पर जो पाकिस्तान का बार्डर है पर तैनात ग्रेनेडियर नसीम शेख वीर अब्दुल हमीद के साथ जंग में आखिरी 3 दिन मोर्चे पर हर पल उनके साथ रहे।
जब अब्दुलहमीद ने ताबड़तोड़ एक एक कर पाकिस्तान के पैटर्न टैंक और विस्फोटकों से लदे पाकिस्तानी ट्रक को ध्वस्त किया।वही नसीम उनकी क्रॉपट लोडेड जीप को चला रहे थे और उनकी शहादत के वक्त नसीम उनके साथ रहे।


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उन्हें आज मलाल है कि हमीद के तरीके से उन्हें वीरगति प्राप्ति करने का यह गौरवशाली अवसर क्यों नहीं प्राप्त हुआ। इस वक्त सुल्तानपुर जिले के कूरेभार कस्बे में एक छोटे से घर में अपने परिवार के साथ रह रहे हैं। मूलतः यह जिले के गोसाईगंज के गांव सिरवारा के निवासी हैं जो अब 1970 से कूरेभार कस्बे में रह रहे है। 72 वर्षीय नसीम शेख सन 1962 में हिंदुस्तानी फौज में भर्ती हुई और फिर 1965 और 71 कि भारत-पाक जंग में हिस्सा लिया। यह वह सौभाग्यशाली फौजी हैं जिन्हें परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद के सानिध्य रहने का गौरव हासिल हुआ। 7 सितंबर से 10 सितंबर को वीरगति प्राप्त हुए तक वह अब्दुल हमीद के साथ रहे।बताते चलें कि 7 सितंबर 1965 को अंबाला कैंट से उच्चाधिकारियों के आदेश पर ग्रेनेडियर नसीम शेख को हवलदार अब्दुल हमीद के साथ खेमकरण मोर्चे के लिए बतौर चालक रवाना किए गया था। आमने-सामने की जंग में वीर अब्दुल हमीद ने जब ताबड़तोड़ 11 पैटर्न टैंक व विस्फोटक सामग्रियों से लैस ट्रकों को विस्फोट से उड़ाया तो दुश्मनों के होश उड़ गए।जब जब टैक नेस्तनाबूद होता तब हामिद के साथ साथ जय हिंद का नारा नसीम शेख ने भी लगाया था।

इस जांबाज को मलाल है कि जब 10 सितंबर को सुबह 10:30 बजे वीर अब्दुल हमीद दुश्मनों के टैंको को निशाना बना रहे थे उसी वक्त पाकिस्तानी हमलावरों के एक अचूक निशाने से उन्हें वीरगति प्राप्त हो गई और वह यहाँ इस ऐतिहासिक अवसर से महरूम रह गए। हालांकि बाद में सरकार ने उन्हें रक्षा मेडल प्रदान किया

गौरतलब हो कि इस बहादुर ड्राइवर नसीम शेख को
71 की जंग भी लड़ने का सौभाग्य भी मिला हैं।
सन 78 में वह फौज से रिटायर हो गए और फौज ने उनकी सेवा अनुकरणीय भी माना। देश की फौज ने उन्हें प्रशस्ति पत्र दिया। पर अब जांबाज फौजी की सुध नहीं ली जा रही हैं

देश की हुकूमत में आज भी उन्हीं गौरवशाली क्षणों को अपनी जेहन में जिंदा रख वह जी रहे हैं। परिवार में मासिक पेंशन के सहारे दो बेटे तीन बेटी और पत्नी की परवरिश पर बच्चों को ठीक से तालीम नहीं दिला सके ,मलाल रह गई कि एक बेटा तो कम से कम फौज में जाता और जो मैं नहीं कर पाया उसे वह पूरा कर दिखता।

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