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अंशिका उपाध्याय का एक और गीत हुआ वायरल,रामजी से पूछय जनकपुर कय नारी।
राम मिथिला के दामाद थे। उन्हें लेकर मिथिलावासियों में जितना गर्व का भाव है, उतना ही अपनी बेटी सीता के दुखों के लिए क्षोभ भी। इसलिए यह समाज राम से सवाल करता है
मिथिला में यह गारी भगवान राम के लिए गाई जाती है। राम मिथिला के दामाद हैं। मैथिली समाज अपने गीतों और कथाओं में राम को ख़ूब याद करता है। मानो राम घर-परिवार के हों। शादी-ब्याह में राम और सीता के विवाह से जुड़े गीत ही गाए जाते हैं। जितनी रस्में, उतने गीत।
‘सीता स्वयंवर’ मिथिला में एक बड़ी घटना की याद के रूप में गाई और सुनाई जाती है। इस परंपरा का निर्वाह आज भी हो रहा है। आज भी सीतामढ़ी में विवाहपंचमी के दिन अयोध्या से बारात आती है। मिथिला में बारात के स्वागत में गीत गाए जाते हैं और द्वार लगते समय ख़ूब गारियां गाई जाती हैं। वर और वर पक्ष के परिजनों का स्वागत गारियों से किया जाता है। सीतामढ़ी में राम के बारातियों का स्वागत भी गारियों से किया जाता, ‘तोहरा से पूछूं मैं ओ धनुषधारी/एक भाई गो काहे, एक काहे कारी…।’
कई गीत ऐसे हैं, जिनमें राम के सांवले रूप पर चुटकी ली गई है। यानी मिथिला की पहली शिकायत इस बात को लेकर है कि उनकी सुंदर-सुशील बेटी का विवाह सांवले रंग के एक पुरुष से हुआ। क्या हुआ, जो उन्होंने शिवजी का धनुष तोड़कर अपनी वीरता का प्रदर्शन किया था। थे तो सांवले ही!
लेकिन दूसरी तरफ़ कई गीतों में उनको सुंदर दूल्हा भी कहा गया है। निंदा अपनी जगह है, लेकिन दामाद तो दामाद है। हालांकि सुंदर कहते हुए भी तंज ग़ायब नहीं हुआ है। एक गीत में तो रघुवंशी राम के ऊपर इस तरह भी ताना मारा गया है, ‘अहां के लेलनि खरीदि यो रघुवंशी दुलहा/ मिथिला में गेलौं बिकाय यो रघुवंशी दुलहा…।’ यानी रघुवंश के दूल्हा मिथिला में आकर बिक गए। उनको राजा जनक ने ख़रीद लिया।
मिथिला में दामाद के सम्मान की परंपरा रही है। यह गीत तो बहुत प्रसिद्ध है, ‘आजु मिथिला नगरीय निहाल सखिया/ चारो दुलहा में बड़का कमाल सखिया…’ लेकिन सीता बेटी की विदाई के समय के इस गीत में राम के लिए शिकायत का भाव अनायास आ जाता है, ‘बड़ रे जतनसं सिया धिया पोसलहुं / सेहो रघुवंशी नेने जाय…।’ यानी गौरव अपनी जगह, शिकायत अपनी जगह।
राम को लेकर मिथिला के समाज में द्वंद्व दिखाई देता है। सीता की धरती का राम के साथ विचित्र रिश्ता है। वहां हर लड़की के लिए यह कामना की जाती है कि उसका वर राम जैसा प्रतापी हो, लेकिन कोई यह नहीं चाहता कि उनकी बेटी का भाग्य सीता जैसा हो। आज भी मिथिला में पश्चिम दिशा में लड़की का विवाह करना शुभ नहीं माना जाता। सीता पश्चिम में ही ब्याही गई थी और इतने बड़े घर में जाकर भी उसका जीवन कष्टों में ही बीता।
जिस दिन सीता का विवाह हुआ उस दिन मिथिला में किसी लड़की का विवाह नहीं किया जाता, जबकि कहा जाता है कि विवाह पंचमी की तिथि शादी के लिए बहुत शुभ होती है। सीता की धरती पर लड़कियां अच्छे वर के लिए गौरी पूजा करती हैं, सीता की पूजा नहीं। इसको लेकर गीत भी हैं, ‘राम बियाहने कौन फल भेल/ सीता जन्म अकारथ गेल…।’
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