रायबरेली-मजबूत गढ़ रायबरेली में, कमजोर होती कांग्रेस
रायबरेली में भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की मौजूदगी में काग्रेस नेता दिनेश प्रताप सिंह समर्थकों समेत भाजपा में शामिल हुए। उनके भाई व काग्रेस विधायक राकेश सिंह इस हृदय परिवर्तन कार्यक्रम में मंच पर नहीं चढ़े, लेकिन आंतरिक समर्थन रहा।
मजबूत गढ़ रायबरेली में, कमजोर होती कांग्रेस
रिपोर्ट- हिमांशु शुक्ला
रायबरेली : काग्रेस यूं तो पूरे यूपी में कमजोर दिखती ही है। अभी तक रायबरेली उसे ताकत देती रही। लेकिन, स्थानीय नेताओं में अंर्तद्वंद और शीर्ष नेतृत्व की अनदेखी पार्टी की लुटिया डुबो रही है। लोस चुनाव में सोनिया गाधी की जीत का अंतर घटना सबक जरूर था, संगठन चेता नहीं। दिल्ली से आए हुक्म की तामीली ही उसका कामकाज है। इसी नाते चाहे विधायक राकेश सिंह हों या अदिति सिंह निर्देशों को ठेंगा दिखा पार्टी को छका रहे हैं।
21 अप्रैल 2018 को रायबरेली में भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की मौजूदगी में काग्रेस नेता दिनेश प्रताप सिंह समर्थकों समेत भाजपा में शामिल हुए। उनके भाई व काग्रेस विधायक राकेश सिंह इस हृदय परिवर्तन कार्यक्रम में मंच पर नहीं चढ़े, लेकिन आंतरिक समर्थन रहा।
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अंतरात्मा से बोल रहे राकेश और अदिति!
काग्रेस का झडा बैनर लेकर वोट मागने वाले हरचंदपुर और सदर विधायक अब अंतरात्मा की आवाज बोलने लगे हैं। बात 25 नवंबर को अयोध्या धर्मसभा की है। जिसमें समर्थकों के संग काग्रेस विधायक राकेश सिंह पहुंचे थे। फोटो मीडिया में आई तब वे बोले थे कि ‘राम काज कीन्हें बिन मोहि कहा विश्राम।’ इसे अंतरात्मा की आवाज बताया। पाच अगस्त को जब अनुच्छेद 370 हटा, तब सदर से काग्रेस विधायक अदिति सिंह भी पार्टी लीक से हटते हुए बोलीं। उन्होंने भी इसे अंतरात्मा की आवाज बताई। इसके बाद पार्टी के निर्देशों के खिलाफ विशेष सत्र में उपस्थित होकर संगठन को छकाया।
लोकसभा में वोट घटे, विधायक भी छिटक रहे
सन् 1952 से 2019 के बीच अब तक हुए चुनावों में 17 बार काग्रेस यहा से जीती। उसके वोट बढ़ते ही रहे। लेकिन, 2019 में सोनिया गाधी की जीत का अंतर घट गया। इधर, छह में से काग्रेस के पास राकेश और अदिति ही दो विधायक हैं। उनके भी बयानों से पार्टी असहज होती रहती है।
हकीकत से अनजान है गाधी परिवार
काग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका वाड्रा रायबरेली की प्रभारी भी हैं। यहा संगठन में पत्ता भी उन्हीं के इशारे पर हिलता है। जबकि सोनिया के प्रतिनिधि केएल शर्मा हैं। इन दोनों नेताओं के पास फीड बैक पहुंचते हैं। फिर भी पार्टी को चोट पहुंचाने वाली तमाम क्रियाकलापों से नेतृत्व अनजान कैसे है? यह आश्चर्यजनक है।