रायबरेली-एकता की मिसाल,दीवाली में अली..राम बसे रमजान,परशदेपुर में हिदू-मुस्लिम एकता की दिख रही है साफ झलक

किसी कवि ने उपरोक्त पंक्तियां गढ़ीं होंगी। इन्हीं लाइनों को सच होते देखना हो तो नगर पंचायत परशदेपुर का एक चक्कर लगा लीजिए, जहां हिदू-मुस्लिम एकता की झलक साफ दिखेगी।

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दीवाली में अली..राम बसे रमजान

हिमांशु शुक्ला

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रायबरेली : दीवाली में अली बसे, और राम बसे रमजान। इसी सोच को आत्मसात करते हुए किसी कवि ने उपरोक्त पंक्तियां गढ़ीं होंगी। इन्हीं लाइनों को सच होते देखना हो तो नगर पंचायत परशदेपुर का एक चक्कर लगा लीजिए, जहां हिदू-मुस्लिम एकता की झलक साफ दिखेगी।

जी हां, यहां मुहर्रम के दौरान राजू, संजय और रूनी हिदू परिवार अपने घरों में ताजिया रखते हैं। साथ ही आम मुस्लिमों की तरह हुसैन की शहादत को याद करके उनकी आंखें भी नम हो जाती हैं। यहीं नहीं, नया पुरवा के राजेंद्र व इंद्रपाल तो बाकायदा मुहर्रम के मातम में भाग भी लेते हैं। आग का मातम करते हैं

नौवीं मुहर्रम को गमगीन माहौल में इंद्रपाल व राजेन्द्र कस्बे के बड़ा इमामबाड़ा में आग का मातम करते हैं। 34 वर्षीय राजू के लिए यह कोई नया प्रयोग नहीं है। बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द की यह सीख उनके पूर्वजों से मिली है। मुहर्रम के 15 दिन पहले से तैयारियां शुरू हो जाती है।

इनसेट –

संजोये बैठे हैं पूर्वजों की थाती

राजू बताते है कि वर्षों पहले बाबा बदलू पास के ही एक इमामबाड़े में मन्नत पूरी हुई तो उन्होंने संकल्प लिया कि वह मुहर्रम पर ताजिया रखेंगे। गम में मातम भी करेंगे। तभी से पीढ़ी दर पीढ़ी इस परंपरा को निभाते चले आ रहे है। इसी तरह कुछ कहानी राजेंद्र और इंद्रपाल के साथ भी जुड़ी हुई है। इस मिसाल को हम लोगों ने आगे बढ़ाया जिससे क्षेत्र मे अमन चैन का संदेश फैले!

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श्रद्धा और विश्वास दे रहे संदेश

नगर पंचायत परशदेपुर के चेयरमैन विनोद कौशल व मौलाना मुहम्मद इस्लाम नदवी ने बताया कस्बे के दो हिदू परिवार मुहर्रम पर जो भी करते है। उसके पीछे श्रद्धा के साथ ही वे समाज को साम्प्रदायिक सौहार्द का संदेश दे रहे है।