“बहारें हमको ढूँढेंगी न जाने हम कहाँ होंगे” जैसे अफ़साने लिखने वाले मजरूह सुलतानपुरी का…
न तुम होगे न हम होंगे, न दिल होगा मगर फ़िर भी
हज़ारों मंजिलें होंगी हज़ारों कारवां होंगे।
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