“बहारें हमको ढूँढेंगी न जाने हम कहाँ होंगे” जैसे अफ़साने लिखने वाले मजरूह सुलतानपुरी का पार्क हुआ उपेक्षा का शिकार, सामाजिक संगठनों ने सौपा ज्ञापन।

न तुम होगे न हम होंगे, न दिल होगा मगर फ़िर भी
हज़ारों मंजिलें होंगी हज़ारों कारवां होंगे।