नाना महावीर चक्र विजेता,पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी रिश्ते में लगते है चाचा,तो आखिर क्यों मुख़्तार अंसारी बन गए माफिया से बाहुबली नेता, देखे रिपोर्ट।
साल 2019 में बीबीसी पर प्रकाशित कहानी के मुताबिक, मुख़्तार अंसारी के दादा देश की आज़ादी के संघर्ष में गांधी जी का साथ देने वाले नेता के रूप में जाने जाते हैं और 1926-27 में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे डॉक्टर मुख़्तार अहमद अंसारी थे।
ग़ाज़ीपुर में साफ़-सुथरी छवि रखने वाले और कम्युनिस्ट बैकग्राउंड से आने वाले मुख़्तार के पिता सुभानउल्ला अंसारी स्थानीय राजनीति में सक्रिय थे. भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी रिश्ते में मुख़्तार अंसारी के चाचा हैं।
मुख़्तार अंसारी के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को 1947 की लड़ाई में शहादत के लिए महावीर चक्र से नवाज़ा गया था।
मुख़्तार के बड़े भाई अफ़जाल अंसारी ग़ाज़ीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा से लगतार पाँच बार (1985 से 1996 तक) विधायक रह चुके हैं और 2004 में ग़ाज़ीपुर से ही सांसद का चुनाव भी जीत चुके हैं।
1996 में बसपा के टिकट पर जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचने वाले मुख़्तार ने 2002, 2007, 2012 और फिर 2017 में भी मऊ से जीत हासिल की. इनमें से आख़िरी तीन चुनाव उन्होंने देश की अलग-अलग जेलों में बंद रहते हुए लड़े।
मुख़्तार के दूसरे भाई सिबकातुल्ला अंसारी भी 2007 और 2012 के चुनाव में मोहम्मदाबाद से ही विधायक रह चुके हैं।
मुख़्तार अंसारी के दो बेटे हैं. उनके बड़े बेटे अब्बास अंसारी ने 2017 के चुनाव में मऊ ज़िले की ही घोसी विधानसभा सीट से बसपा के टिकट पर अपना पहला चुनाव लड़ा था और 7 हज़ार वोटों से अंतर से हार गए थे।
वहीं मुख़्तार बसपा से शुरू करने के बाद निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ा, फिर 2012 में पारिवारिक पार्टी क़ौमी एकता दल से खड़े हुए और 2017 में पार्टी के बसपा में विलय होने के साथ ही वह भी बसपा में शामिल हो गए. यहां यह दिलचस्प है कि कभी मुख़्तार अंसारी को ‘गरीबों का मसीहा’ बताने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती ने अप्रैल 2010 में अंसारी भाइयों को ‘अपराधों में शामिल’ बताते हुए बसपा से निकाल दिया था।
मुख़्तार अंसारी के भाई अफ़जाल अंसारी ने अपना राजनीतिक करियर कम्युनिस्ट पार्टी से शुरू किया था, फिर समाजवादी पार्टी में गए, इसके बाद उन्होंने ‘क़ौमी एकता दल’ के नाम से अपनी पार्टी का गठन किया और 2017 में बसपा में शामिल हो गए।
2017 के चुनाव से पहले उन्होंने ‘अदालत में उन पर कोई दोष सिद्ध नहीं हुआ है’ कहते हुए अंसारी भाइयों की पार्टी ‘क़ौमी एकता दल’ का विलय बसपा में करवा लिया।
दोआब की उपजाऊ ज़मीन पर बसा ग़ाज़ीपुर ख़ास शहर है. राजनीतिक तौर पर देखें तो एक लाख से ज़्यादा भूमिहार जनसंख्या वाले ग़ाज़ीपुर को उत्तर प्रदेश में भूमिहारों के सबसे बड़े पॉकेट में से एक माना जाता है. यहां तक कि कुछ पुराने स्थानीय पत्रकार आम बोलचाल में ग़ाज़ीपुर को ‘भूमिहारों का वैटिकन’ भी कहते हैं।
मुख़्तार अंसारी के राजनीतिक और आपराधिक समीकरणों में ग़ाज़ीपुर का महत्व बताते हुए वरिष्ठ पत्रकार उत्पल पाठक ने बीबीसी से कहा था, “80 और 90 के दशक में अपने चरम पर रहा बृजेश सिंह और मुख़्तार का ऐतिहासिक गैंगवार यहीं ग़ाज़ीपुर से शुरू हुआ था.”
देश के सबसे पिछड़े इलाक़ों में आने वाले ग़ाज़ीपुर में उद्योग के नाम पर यहां कुछ ख़ास नहीं है. अफ़ीम का काम होता है और हॉकी ख़ूब खेली जाती है।
पाठक के मुताबिक़, “मुख़्तार अंसारी और उनके परिवार का राजनीतिक प्रभाव ग़ाज़ीपुर से लेकर मऊ, जौनपुर, बलिया और बनारस तक है. सिर्फ़ 8-10 प्रतिशत मुसलमान आबादी वाले ग़ाज़ीपुर में हमेशा से अंसारी परिवार हिंदू वोट बैंक के आधार पर चुनाव जीतता रहा है”।
ग़ाज़ीपुर का एक महत्वपूर्ण विरोधाभास यह भी है कि अपराधियों और पूर्वांचल के गैंगवार की धुरी होने के साथ-साथ इस ज़िले से हर साल कई लड़के आईएएस-आईपीएस भी बनते हैं।
ग़ाज़ीपुर के यसुफ़पूर इलाक़े में स्थित मुख़्तार अंसारी का पैतृक निवास ‘बड़का फाटक’ या ‘बड़े दरवाज़े’ के नाम से जाना जाता है. क़स्बेनुमा इस छोटे से शहर में ‘बड़का फाटक’ का पता सभी जानते हैं इसलिए रास्ता पूछते-पूछते उनके घर पहुंचने में मुझे कोई दिक़्क़त नहीं हुई।
दिसंबर महीने में जब मैं ग़ाज़ीपुर पहुंची तब मुख़्तार की बुज़ुर्ग माँ बहुत बीमार चल रही थीं. उनको आख़िरी बार देखने के लिए उनका पूरा परिवार देश-दुनिया के अलग-अलग कोनों से इकट्ठा हो रहा था।
मुख़्तार बांदा जेल में बंद थे लेकिन उनके बड़े भाई अफ़जाल अंसारी और बेटे अब्बास अंसारी ने बीबीसी से बातचीत की. इसके कुछ ही घंटों के भीतर मुख़्तार की माँ का देहांत हो गया।
छोटे भाई मुख़्तार के बारे में बात करते हुए अफ़जाल अंसारी ने बीबीसे से कहा था, “मुख़्तार हमसे दस साल छोटे हैं. स्कूल ख़त्म होने के बाद वो यहीं ग़ाज़ीपुर के कॉलेज में पढ़ते थे. उस कॉलेज में राजपूत-भूमिहारों का वर्चस्व था. वहीं इनकी दोस्ती साधू सिंह नाम के एक लड़के से हुई. उससे दोस्ती निभाने के चक्कर में ये उसकी निजी दुश्मनियों में शामिल हो गए और इनके गले कुछ बदनामियाँ पड़ गईं”।
मुख़्तार अंसारी के घर के बाहर बना ‘बड़ा दरवाज़ा’ आगंतुकों के लिए दिन भर खुला रहता है. बारामदे में खड़ी बड़ी गाड़ियों के क़ाफ़िले के आगे बनी बड़ी-सी बैठक में स्थानीय लोग अंसारी भाइयों से मिलने के इंतज़ार में बैठे थे. बैठक में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष डॉक्टर मुख़्तार अहमद अंसारी से लेकर पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी तक, परिवार के सभी राजनीतिक चेहरों और गुज़र चुके पूर्वजों की तस्वीरें लगीं थीं।
सांसद अफ़ज़ाल अंसारी ने कहा था, “इनके (मुख़्तार के) साथ-साथ पूरे परिवार को भी बदनामी झेलनी पड़ी लेकिन ये सारे मुक़दमे जो मुख़्तार पर लगाए गए हैं वे राजनीति से प्रेरित हैं. 15 साल से ज़्यादा वक़्त से वो जेल में बंद हैं. अगर उन्होंने वाक़ई कुछ गलत किया है तो पुलिस आपकी है, सरकार आपकी है, सीबीआईआपकी है, अब तक कोई गुनाह साबित क्यों नहीं हुआ?”
अफ़ज़ाल ने कहा था, “सिर्फ़ ग़ाज़ीपुर के 8 फ़ीसदी मुसलमान हमें नहीं जिता सकते, यहां के हिंदू हमें जिताते हैं. आख़िर हम भी हर सुख-दुःख में उनके साथ खड़े रहे, रोज़े में मुँह पर रुमाल रखकर यहां लोगों के साथ हाथियों पर बैठकर होली तक खेली है. यह सब हमारे अपने लोग हैं, इसलिए तो हमें इनके वोटों पर भरोसा रहता है”।
मुख़्तार के राजनीतिक प्रभाव के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा था, “मुख़्तार मऊ से चुनाव लड़ते और जीतते आए हैं. राजनीतिक तौर पर हमसे बड़ी औक़ात है मुख़्तार की. उनका ग्लैमर कोशेंट बड़ा है. आज हम गाज़ीपुर से बाहर कहीं भी जाते हैं तो लोग हमारी पहचान उनके नाम से करवाते हैं”।
*माफ़िया से बाहुबली नेता बने मुख़्तार अंसारी का दिल का दौरा पड़ने से हुई मौत,देखे रिपोर्ट।*
माफ़िया से बाहुबली नेता बने मुख़्तार अंसारी का दिल का दौरा पड़ने से हुई मौत,देखे रिपोर्ट।