एक ऐसा गांव जहाँ के नवविवाहित जोड़े सुहागरात से पहले कुलदेवी का मत्था टेकने जाते है नंगे पावँ, उनके वंशजो की चली आ रही है आज भी परंपरा,देखे रिपोर्ट।

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…जहां सुहागरात से पहले मत्था टेकने आते हैं नवविवाहित जोड़े

बिसेन वंश की कुलदेवी धमसा माई धाम के कायाकल्प में जुटी युवाओं की टोली

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सुलतानपुर। जिले में एक स्थान ऐसा भी है ,जहां आज भी नवविवाहित जोड़े सुहागरात से पहले इस धाम पर नंगे पांव चलकर मत्था टेकने आते हैं और उनके जोड़े-जामे की गांठ भी यहीं खोली जाती है। यह स्थान धमसा माई धाम के नाम से प्रसिद्ध है। जिसका इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। जनश्रुतियों के अनुसार क्षत्रिय समाज के बिसेन वंश की यह कुलदेवी हैं। महाराष्ट्र से आए बिसेन वंश के पूर्वजों ने अपने साथ लाए कुलदेवी की यहां स्थापना की जो कालांतर में धमसा माई के नाम से जानी गईं। तबसे यहां आज भी कई गांवों में फैले उनके वंशजों के लिए यह स्थान पूज्य है।धनपतगंज ब्लाक के धनजई धमसन में स्थित धमसा धाम लोगों की आस्था का केंद्र है। पुजारी के अनुसार महाराष्ट्र से सैकड़ों वर्ष पूर्व नंगी तलवार के साथ पांच की संख्या में आने वाले बिसेन वंश के पूर्वज अपनी कुलदेवी भी साथ लाए थे। वे लोग सबसे पहले जहां आकर रुके उस गांव का नाम बिसेना पड़ा जो आज भी उसी नाम से जाना जाता है। तब यह स्थान बियाबान था।

उस दरम्यान यहां भरों का कब्जा था। जिनसे इनकी लड़ाई हुई। इस लड़ाई में भरों की पराजय हुई, फिर वहां से वह लोग बगल स्थित धनजई में आकर बसे। भरों से युद्ध बाद काफी मात्रा में मिले धन की वजह से इस स्थान को धन की जई कहा गया जिससे इसका नाम धनजई पड़ा। आगे चलकर  सरैया मझौवा सहित आसपास के दर्जनों ऐसे गांव हैं जहां इस वंश की बेल पड़ी। आज भी इस स्थान का बिसेन वंश के लिए बड़ा महत्व है और वह परंपरा भी कायम है। नए जोड़े सुहागरात के पहले यहां नंगे पांव चलकर पूजन, अर्चन, दर्शन के लिए आते हैं। दीपक जलाते हैं। नए सफर की सफलता की कामना करते हैं। उनके जोड़े-जामे की गांठ यहीं खोली जाती है। यहां शादी ब्याह में टिकना, मौरी सरवाना जैसे कर्मठ भी होते हैं। आज भी हर शुक्रवार और सोमवार को श्रद्धालु यहां कराही देने आते हैं। यही नहीं यहां की दूसरे जिलों में ब्याही इस समाज की बेटियों के पाल्यों का मुंडन संस्कार भी यहीं होता है। पौराणिक मान्यता के दृष्टिगत समय-समय पर इस स्थान के सौंदर्यीकरण को लेकर मांग उठी, कुछ ने वादे भी हुए लेकिन नतीजा सिफर ही निकला। स्थानीय विधायक रहे सूर्यभान सिंह के प्रयास से मुख्यमंत्री त्वरित विकास योजना अंतर्गत अब धाम तक सड़क का निर्माण हुआ है। सरैया मझौवा के प्रधान रहे स्वर्गीय छेदी सिंह के पौत्र बीडी सिंह ने ग्राम वासियों के सहयोग से एक हनुमान मंदिर का निर्माण कराया।


[वहीं पूर्व डीएफओ समाजसेवी रामदुलार पाठक एवं रामअंजोर सिंह के भतीजे संजय सिंह की अगुवाई में निर्माण कार्य कराया जा रहा है। स्थानीय राजगीर दीपू चौहान, अभय सिंह सहित युवाओं की टोली स्थान को एक नया रंग रूप देने में जुटी है। गौरतलब है, कि यहां पहले दंगल का आयोजन होता था जिसमें सुदूर अंचलों से पहलवान आते थे। लेकिन नब्बे के दशक में जब राम मंदिर आंदोलन चरम पर था और अयोध्या के महंत बाबा विश्वनाथ दास शास्त्री सांसद एवं ओम प्रकाश पांडे विधायक हुए तो धाम पर धार्मिक गतिविधियां भी बढ़ी। उन लोगों का भी बराबर आना जाना बना रहा। बकौल, पुजारी दुर्गा प्रसाद, ‘उसी दरम्यान पुराने साथी राम यज्ञ यादव एवं राम अंजोर सिंह ने सलाह दी कि यह देवी का स्थान है। यहां कथा, भागवत ही अच्छी लगती है दंगल नही जिसमें झगड़े हों। तभी गायत्री प्रज्ञा पीठ के आचार्य नरेंद्र देव तिवारी की अगुवाई में नौ कुंडीय गायत्री महायज्ञ की शुरुआत हुई बाद में श्रीमद्भागवत कथा भी होने लगी। आज प्रतिवर्ष यहां यज्ञ और भागवत कथा का आयोजन कार्तिक मास में होता है।

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